मौजूदा रेपो दर: 2022_WC

banner-dynamic-scroll-cockpitmenu_homeloan

reporatemeaning-wc

भारत में मौजूदा रेपो दर (अक्टूबर 2024)

07 जून 2024 को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, वर्तमान रेपो दर 6.50%** है और मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय के अनुसार रेपो दर में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

रिवर्स रेपो दर भी 3.35% पर अपरिवर्तित है. बैंक दर और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) को बदलकर 6.75% कर दिया गया है. स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी दर 6.25% है. रेपो दर के बारे में अधिक जानने के लिए, आगे पढ़ें.

रेपो दर का अर्थ_डब्ल्यूसी

रेपो दर क्या है?

रेपो दर का अर्थ समझने के लिए, यहां हर शब्द का विवरण दिया गया है. 'रेपो' शब्द 'रीपरचेसिंग ऑप्शन' या 'री-परचेसिंग एग्रीमेंट' से बना है’. रेपो दर वह दर है जिस पर कमर्शियल बैंक सिक्योरिटी और बॉन्ड को गिरवी रखकर RBI से पैसे उधार लेते हैं. जैसा कि नाम से पता चलता है, बाद में उन एसेट को Apex बैंक से पूर्वनिर्धारित कीमत पर दोबारा खरीद लिया जाता है. इसी प्रकार, जब RBI कमर्शियल बैंकों से पैसा उधार लेता है, तो ब्याज पर लगने वाले शुल्क को रिवर्स रेपो दर कहा जाता है.

भारतीय रिज़र्व बैंक की मॉनेट्री पॉलिसी कई इंस्ट्रूमेंट, जैसे रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, वैधानिक लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर) और मार्जिनल स्टैंडिंग सुविधा (एमएसएफ) का इस्तेमाल करके इकोनॉमी में कैश फ्लो को नियंत्रित करने में मदद करती है.

कमर्शियल बैंक, फंड के संकट के समय आरबीआई से उधार लेते हैं, जो शॉर्ट-टर्म लोन होते हैं और कभी-कभी मात्र 24 घंटों के लिए भी होते हैं.

reporatework_wc

हाल ही में अपडेट की गई

इस समय रेपो दर क्या है?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने 07 जून 2024 को अपनी दरों में संशोधन किया, जिसके बाद कुछ विशिष्ट दरें बदल गई हैं.

ब्याज दर का प्रकार मौजूदा दर अंतिम अपडेट की तिथिः
रेपो दर 6.50%* 07 जून 2024

ध्यान दें: यह जानकारी 07 जून 2024 की प्रेस रिलीज के अनुसार अपडेट की गई है.

rbi repo rate history_wc

आरबीआई के रेपो दर का इतिहास: 2014 - 2024

नीचे दी गई टेबल में rbi द्वारा निर्धारित की गई कुछ हालिया रेपो दरें दी गई हैं:

अंतिम अपडेट रेपो दर
07-June-2024 6.50%*
08-February-2024 6.50%*
08-December-2023 6.50%*
06-October-2023 6.50%*
10-August-2023 6.50%*
08-June-2023 6.50%*
08-Feb-2023 6.50%*
07-Dec-2022 6.25%*
30-Sep-2022 5.90%*
08-Jun-2022 4.90%*
13-May-2022 4.40%*
04-Dec-2020 4%*
09-Oct-2020 4%*
06-Aug-2020 4%*
22-May-2020 4%*
27-Mar-2020 4.40%*
06-Feb-2020 5.15%*
05-Dec-2019 5.15%*
10-Oct-2019 5.15%*
07-Aug-2019 5.40%*
06-June-2019 5.75%*
04-Apr-2019 6.00%*
07-Feb-2019 6.25%*
01-Aug-2018 6.50%*
06-June-2018 6.25%*
02-Aug-2017 6.00%*
04-Oct-2016 6.25%*
05-Apr-2016 6.50%*
29-Sept-2015 6.75%*
02-June-2015 7.25%*
04-Mar-2015 7.50%*
15-Jan-2015 7.75%*
28-Jan-2014 8.00%*

how does repo rate work _wc

रेपो दर कैसे काम करती है?

रेपो दर या रीपरचेज़ दर वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) लिक्विडिटी बनाए रखने और महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कमर्शियल बैंकों को उनकी शॉर्ट-टर्म फंड आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैसे उधार देता है. अत्यधिक महंगाई के दौरान, आरबीआई रेपो दर बढ़ा देता है, जिससे व्यवसाय उधार लेना कम कर देते हैं और इकोनॉमी में इन्वेस्टमेंट करने की गतिविधियां कम हो जाती हैं और मार्केट में पैसे की सप्लाई भी कम हो जाती है. महंगाई के अलावा, देश में करेंसी डेप्रिसिएशन का जोखिम होने पर भी रेपो दर में वृद्धि हो सकती है. वैकल्पिक रूप से, अधिक मंदी के दौरान, उधार लेने के लिए प्रोत्साहित करने और मार्केट में फंड के फ्लो को बढ़ाने के लिए रेपो दरें कम की जाती हैं. जून 2024 के अनुसार मौजूदा रेपो दर 6.50% है*.

impact of the repo rate_wc

इकोनॉमी पर रेपो दर का क्या असर पड़ता है?

रेपो दर इकोनॉमी में लिक्विडिटी की मात्रा को प्रभावी रूप से निर्धारित करती है. रेपो दर में होने वाली वृद्धि से लेंडर की लागत बढ़ जाएगी - जिसका प्रभाव नियमित उधारकर्ताओं पर पड़ता है. जब rbi इकोनॉमी में कैश सर्कुलेशन को बढ़ाना चाहता है, तो वह उधार लेने और नकद खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए रेपो दर को कम कर देता है. रेपो दर निम्नलिखित तरीकों से इकोनॉमी को प्रभावित करती है:

  1. महंगाई से मुकाबला: रेपो दर और महंगाई एक-दूसरे के विपरीत कार्य करती हैं; दर में वृद्धि होने से यह सुनिश्चित होता है कि इकोनॉमी में कैश का सर्कुलेशन कम हो जाए, ताकि महंगाई को नियंत्रित किया जा सके.
  2. लिक्विडिटी को बढ़ाती है: दूसरी ओर, जब इकोनॉमी में कैश लिक्विडिटी की अत्यंत आवश्यकता होती है, तो रेपो दर में कमी से सस्ती दर पर उधार मिलने की सुविधा को और इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा मिलता है.

रेपो दर होम लोन को कैसे प्रभावित करती है?

रेपो दर होम लोन को कैसे प्रभावित करती है?

07 जून 2024 को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दर में संशोधन का होम लोन पर कुछ प्रभाव पड़ेगा. होम लोन पर रेपो दर के प्रभावों की सूची निम्नलिखित है:

  1. ईएमआई: रेपो दर में वृद्धि के कारण होम लोन की ब्याज दरों पर प्रभाव पड़ सकता है. इसकी वजह से ईएमआई बढ़ सकती है, जिसके कारण उधारकर्ताओं को अधिक मासिक किश्त चुकानी पड़ सकती है हालांकि, अगर रेपो दर कम हो जाती है, तो होम लोन की ब्याज दर भी कम हो सकती है रेपो दर में कमी उधारकर्ताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली मासिक किश्त को कम करेगी.
  2. ब्याज दर: रेपो दर में वृद्धि होम लोन की ब्याज दर को बढ़ा सकती है, जिसका अर्थ है कि उधारकर्ताओं को अपने होम लोन पर ज़्यादा ब्याज का भुगतान करना होगा इसके विपरीत, यदि रेपो दर कम हो जाती है, तो होम लोन की ब्याज दर भी कम हो सकती है, जिस मामले में उधारकर्ताओं को कम ब्याज दर का भुगतान करना होगा.
  3. लोन की पात्रता: रेपो दर में वृद्धि के साथ, उधारकर्ताओं के लिए पात्र लोन राशि भी कम हो सकती है. लेकिन, अगर रेपो दरें कम हो जाती हैं, तो उधारकर्ताओं को ज़्यादा लोन राशि मिल सकती है.
  4. लोन व्यवहार्यता: होम लोन की सुविधा रेपो दर पर निर्भर करती है. रेपो दर में वृद्धि के साथ, होम लोन लेना कम सुविधाजनक हो सकता है. दूसरी ओर, अगर रेपो दर कम हो जाती है, तो होम लोन लेने की संभावना बढ़ सकती है.

the impact of repo rate rise on individuals_wc

आम लोगों पर रेपो दर बढ़ने का प्रभाव

  • बचत पर प्रभाव - जिन लोगों के पास बचत और फिक्स्ड डिपॉजिट है, उन्हें रेपो दर बढ़ने पर अपनी बचत और फिक्स्ड डिपॉजिट पर उच्च दरों और रिटर्न का लाभ मिलेगा.
  • लोन लेने पर प्रभाव - वर्तमान रेपो दर बढ़ने से लेंडिंग दरें बढ़ जाती हैं, इसलिए लोन लेने की क्षमता कम हो जाती है.
  • मॉरगेज़ दरों पर प्रभाव - रेपो दर में बढ़ोत्तरी का मतलब है कि फ्लोटिंग ब्याज दर वाले सभी मौजूदा होम लोन महंगे हो सकते हैं, क्योंकि इस वृद्धि के बोझ को बैंक अपने कस्टमर पर डालना चाहेंगे. इससे खरीदारों की होम लोन की समान मासिक किश्तें (ईएमआई) अनिवार्य रूप से बढ़ जाएंगी.

repo rate linked home loans_wc

रेपो दर से लिंक होम लोन क्या होता है?

जब उधारकर्ता अपनी होम लोन की ब्याज दरों को rbi की रेपो दर से लिंक करते हैं, तो वे ऐसे बेंचमार्क के साथ अपनी ब्याज दर को लिंक करते हैं जो लेंडर के नियंत्रण में नहीं है. रेपो दर से लिंक होम लोन के दो घटक यहां दिए गए हैं: 

  • रेपो दर: उधारकर्ता अपने होम लोन को RBI की रेपो दर से लिंक कर सकते हैं, जो कि वर्तमान में 6.50%* है. इससे उधारकर्ताओं को पूरी पारदर्शिता मिलती है, और वे अपनी होम लोन की ब्याज दर में होने वाले उतार-चढ़ाव का निर्धारण करने वाले कारकों को मॉनीटर कर पाते हैं.
  • स्प्रेड: होम लोन की अंतिम ब्याज दर निर्धारित करने के लिए लेंडर रेपो दर के ऊपर इस अतिरिक्त मार्जिन को लागू करते हैं. रेपो दर जहां राष्ट्रीय स्तर पर फिक्स रहती है, वहीं स्प्रेड का निर्धारण व्यक्ति की प्रोफाइल, और उसकी होम लोन एप्लीकेशन से संबंधित जोखिम कारकों के आधार पर किया जाता है.

बजाज हाउसिंग फाइनेंस पात्र एप्लीकेंट को आकर्षक रेपो दर से लिंक्ड होम लोन प्रदान करता है. हमारी आकर्षक लेंडिंग शर्तों का लाभ लेने के लिए आज ही अप्लाई करें. 

​रेपो दर बनाम बैंक दर

​रेपो दर बनाम बैंक दर

​​​कमर्शियल और केंद्रीय बैंक लेंडिंग और उधार की गणना करने के लिए रेपो दर और बैंक दर का उपयोग करते हैं. इन दरों का उपयोग भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा बैंकों या अन्य फाइनेंशियल संस्थानों को लोन देने और मार्केट में कैश फ्लो को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है

आइए हम समझते हैं कि रेपो दर और बैंक दर को कौन से कारक अलग करते हैं. रेपो रेट वह ब्याज दर है, जो आरबीआई बैंकों से लेता है, जब वे सरकारी सिक्योरिटीज़ को गिरवी रखकर धन उधार लेना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर, बैंक दर वह ब्याज दर है, जिसपर भारतीय रिजर्व बैंक बिना किसी प्रतिभूति को गिरवी रखे, बैंकों को पैसे उधार देता है. रेपो दर और बैंक दर के बीच अंतर जानने के लिए आगे पढ़ें.

  • रेपो दर: यह दर आमतौर पर बैंक दर से कम होती है, क्योंकि लेंडर और अन्य फाइनेंशियल संस्थाओं द्वारा लोन के लिए सरकारी सिक्योरिटी को गिरवी रखा जाता है. लोन पर रेपो दर का प्रभाव, बैंक दर की तुलना में कम महत्वपूर्ण है, लेकिन यह उधार लेने की गतिविधि को प्रभावित कर सकता है. आरबीआई कमर्शियल बैंकों की शॉर्ट-टर्म फाइनेंशियल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रेपो दर का उपयोग करता है.
  • बैंक दरः यहां, बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेने वाले पैसे के लिए कोई सिक्योरिटीज़ गिरवी नहीं रखते. इसलिए बैंक दर रेपो दर से अधिक है. जब आरबीआई बैंक की दरें बढ़ाता है, तो बैंक भी लोन की ब्याज दर को बढ़ाते हैं, जिससे उधारकर्ताओं के लिए लोन महंगे हो जाते हैं. आरबीआई देश के दीर्घकालिक आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बैंक दरों का उपयोग करता है.

रेपो रेट बनाम रिवर्स रेपो रेट

रेपो दर बनाम रिवर्स रेपो दर

रेपो दर वह दर है, जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक सरकारी सिक्योरिटीज़ के बदले कमर्शियल बैंकों को धन देता है, वहीं रिवर्स रेपो दर वह दर है, जिस पर केन्द्रीय बैंक कमर्शियल बैंकों से धन उधार लेता है. भारतीय रिज़र्व बैंक, बैंकों के साथ, कमर्शियल बैंकों के लिए छोटी अवधि के लिए सिक्योरिटीज़ गिरवी रखता है, ताकि वे स्वैच्छिक रूप से अपने फंड को अनुकूल ब्याज दर पर जमा कर सकें. रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के बीच प्रमुख अंतर यहां दिए गए हैं:

  • ​​रेपो दर का प्रयोग उधार देने की गतिविधि को मैनेज करके मार्केट में कैश फ्लो और महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. जबकि रिवर्स रेपो दर का प्रयोग इकोनॉमी की लिक्विडिटी को नियंत्रित करने और फाइनेंशियल व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए किया जाता है.
  • रेपो दर एक आर्थिक नीति है, जिसका उपयोग कैश की आपूर्ति को कम करके महंगाई को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है, वहीं रिवर्स रेपो दर का उपयोग महंगाई को नियंत्रित करने और फाइनेंशियल सिस्टम को बनाए रखने के लिए किया जाता है.
  • रेपो दर की ब्याज दर रिवर्स रेपो दर से अधिक है
  • ​रेपो दर लोन या इन्वेस्टमेंट गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है. यह शेयर बाजार के प्रदर्शन को भी प्रभावित कर सकती है. रिवर्स रेपो दर अल्पकालिक उधार देने या लेने और बाजार की स्थितियों को प्रभावित कर सकती है

*नियम व शर्तें लागू.

repo_faqs_wc

सामान्य प्रश्न

रिवर्स रेपो दर RBI की मौद्रिक पॉलिसी का एक टूल है जो देश की नकद आपूर्ति को नियंत्रित करने में मदद करता है. रिवर्स रेपो दर उस दर को नियंत्रित करती है, जिस पर केन्द्रीय बैंक कमर्शियल बैंकों से धन उधार लेता है. RBI के अनुसार वर्तमान रिवर्स रेपो दर 3.35% है.

जब rbi रेपो दर को कम करता है, तो कमर्शियल बैंकों को कम लागत पर उधार लेने की सुविधा का लाभ मिलता है, और यही लाभ कस्टमर को भी दिया जाता है. इसके परिणामस्वरूप घर के मालिकों को कम ब्याज दरों का लाभ मिलता है. इसी तरह, जब रेपो दर बढ़ती है, तो बैंकों की उधार लेने की लागत भी बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप होम लोन पर लगने वाली ब्याज दर भी बढ़ जाती है.

​​मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट या एमसीएलआर वह न्यूनतम उधार की दर है जिसके नीचे बैंक उधार नहीं दे सकता भारतीय रिज़र्व बैंक ने लोन की ब्याज दरों को निर्धारित करने के लिए एमसीएलआर को अप्रैल 1, 2016 में लागू किया. इसे बेस रेट सिस्टम के बदले लागू किया गया, जो पहले कमर्शियल बैंकों की उधार दरों को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. मूल रूप से, बैंक अपने लोन के लिए अधिकतम ब्याज दर निर्धारित करने से पहले एमसीएलआर पर ध्यान देते हैं.

रेपो दर:

रेपो दर का मतलब दोबारा खरीदने के ऑप्शन की दरों से या दोबारा खरीदने के एग्रीमेंट की दरों से है. अन्य उधारकर्ताओं के समान, बैंकिंग संस्थानों को भी केंद्रीय बैंक से उधार लेने वाले फंड पर ब्याज का भुगतान करना होता है, और वे अपने कैश फ्लो की कमी से निपटने के लिए रातोंरात लोन लेने के बदले में अपनी सिक्योरिटीज़, जैसे सोना या ट्रेजरी बिलों को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास गिरवी रखकर ऐसा करते हैं. रेपो दर का इस्तेमाल इकोनॉमी की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है.

रिवर्स रेपो दर:

फाइनेंशियल संस्थानों से उधार लेने पर आरबीआई को ब्याज का भुगतान करना होता है, जिसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं. रिवर्स रेपो दर महंगाई को कम करने के लिए मार्केट में लिक्विडिटी को नियंत्रित करती है. उच्च ब्याज दर के साथ, बैंक द्वारा आरबीआई को फंड उधार देने की अधिक संभावना होती है, जो मार्केट की अतिरिक्त लिक्विडिटी को कम करने में मदद करता है.

प्रकार दर
रेपो दर 6.50%*
रिवर्स रेपो दर 3.35%

अधिक रेपो दरों के कारण बैंकिंग संस्थानों के लिए आरबीआई से फंड उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है, जो मार्केट लिक्विडिटी को कम करती है और महंगाई को नियंत्रित करती है.

हालांकि दोनों दरें ऐसे अल्पकालिक उपाय हैं, जो भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा लोन देने और बाज़ार में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं, पर रेपो दर वह ब्याज दर है, जिसपर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियां गिरवी रखने पर लोन देता है. वहीं दूसरी ओर, बैंक दर वह ब्याज दर है, जिसपर भारतीय रिजर्व बैंक बिना किसी प्रतिभूति को गिरवी रखे, बैंकों को पैसे उधार देता है.

रेपो दर में वृद्धि तब की जाती है जब केंद्रीय बैंक महंगाई को नियंत्रित करना चाहता है या बैंकों की लिक्विडिटी बढ़ाना चाहता है. RBI रेपो दर को तब बढ़ाता है जब उन्हें कीमतों को नियंत्रित करने और लोन वितरण को सीमित करने की आवश्यकता होती है.

रेपो दर में वृद्धि होने से होम लोन की ब्याज दर बढ़ जाती है क्योंकि ये दोनों दरें आपस में सीधे तौर पर लिंक होती हैं. रेपो दर में वृद्धि का मतलब होता है कि कमर्शियल बैंकों को केंद्रीय बैंक, जिससे वे पैसे उधार लेते हैं, को अधिक ब्याज का भुगतान करना होगा, और इसलिए, यह होम लोन को भी प्रभावित करता है और नतीजतन ईएमआई और/या लोन अवधि बढ़ जाती हैं.

repo_rate_relatedarticles_wc

repo_rate_pac_wc

यह भी देखें

अधिक जानें

अधिक जानें

अधिक जानें

अधिक जानें

पीएएम-ईटीबी वेब कंटेंट

प्री-क्वालिफाइड ऑफर

पूरा नाम*

फोन नंबर*

ओटीपी*

जनरेट करें
अभी देखें

call_and_missed_call

p1 commonohlexternallink_wc

Apply Online For Home Loan
ऑनलाइन होम लोन

तुरंत होम लोन अप्रूवल मात्र

रु. 1,999 + जीएसटी में*

₹5,999 + जीएसटी में
*नॉन-रिफंडेबल

CommonPreApprovedOffer_WC

प्री-अप्रूव्ड ऑफर